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हिंदी कहानियां - भाग 83

एक दिन अकबर बादशाह के दरबारियों ने बादशाह से शिकायत की - 'हुजूर! आप सब प्रकार के कार्य बीरबल को ही सौंप देते हैं, क्या हम कुछ भी नहीं कर सकते?'


बादशाह ने कहा - 'ठीक है....मैं अभी इसका फैसला कर देता हूं।'

उन्होंने एक दरबारी को बुलाया और उससे कहा - 'मैं तुम्हें तीन रूपये देता हूं। इनकी तीन चीजें लाओं। हर एक की कीमत एक रूपया होनी चाहिए। पहली चीज यहां की होनी चाहिए। दूसरी चीज वहां की होनी चाहिए। तीसरी चीज न यहां की हो, न वहां की हो।'

दरबारी तुरन्त बाजार गया। दुकानदार के पास जाकर उसने उससे ये तीनों चीजें मांगी। दुकानदार उसकी बात सुनकर हंसने लगा और बोला - 'ये चीजें कहीं भी नहीं मिल सकतीं।'

उन तीन चीजों को दरबारी ने अनेक दुकानों पर खोजा। लेकिन जब उसे तीनों चीजें कहीं भी नहीं मिलीं तो निराश होकर दरबार में लौट आया। उसने बादशाह अकबर को आकर बताया- "ये तीनों चीजें किसी भी कीमत पर, कहीं भी नहीं मिल सकतीं। अगर बीरबल ला सकें तो जानेंगे।'

अकबर बादशाह ने बीरबल को बुलाया और कहा कि जाओ ये तीनों चीजें लेकर आओ।

बीरबल ने कहा - 'हुजूर! कल तक ये चीजें अवश्य आपकी सेवा में हाजिर कर दूंगा।'

अगले दिन जैसे ही बीरबल दरबार में आए तो बादशाह अकबर ने पहले दिन वाली बात को याद दिलाते हुए पुछा - 'क्यों, क्या हमारी चीजें ले आए?'

बीरबल ने फौरन कहा - 'जी हां....मैंने पहला रूपया एक फकीर को दे दिया जो वहां से भगवान के पास जा पहुंचा। दूसरा रूपया मैंने मिठाई में खर्च किया जो यहां काम आ गया और तीसरे रूपये का मैंने जुआ खेल लिया जो कि न यहं काम आएगा, न वहां अर्थात परलोक में।'

उनकी बात सुनकर सभी चकित रह गए और अकबर ने बीरबल को बहुत सा ईनाम दिया।

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